किस्से अनोखे!
हक़ीम मिला कल शाम ही खाने पर,
पूछा अब तबियत कैसी है शायर?
पूछा समय पर लेते हो दवा आजकल?
कहा मैंने : हाँ, हक़ीम जैसा तुमने बताया था,
ठीक वैसा इक सुबह इक शाम लेता हूँ!
लिखता हूँ! हर रोज सुबह इक ख़ुद पर,
और देर शाम को इक चाँद पर!
हकीम : अरे शायर! शायद पर्चा ही तुमने खोला नहीं,
क्या लिखा था? उस पर्चे पर ये ही नहीं देखा होगा।
खैर, चलो जो दवा लिया वो सही लिया तुमने!
जो किया, वो बिल्कुल सही किया तुमने!
अब जान गया, पता चल गया मुझे!
किसी शायर को अब कोई पर्चा नहीं दूंगा मैं!
कह दूँगा बस इक सुबह इक शाम!
इक सुबह इक शाम!!
- V.S.Nikhil Kaser
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