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ट्रेन का वो सफ़र


नमस्कार साथियों! आशा करता हूँ आप सभी स्वस्थ, मस्त, व्यस्त होंगे और कुछ जानने की जिज्ञासा से इस लेख को पढ़ रहे होंगे। तो चलिए एक किस्से के साथ इस लेख की शुरु करते हैं!

बहुत दिनों के बाद कोई लेख लिखो तो बड़ी दुविधा होती हैं कि लिखे या नहीं? और इस दुविधा के बीच मैंने आखिरकार लिखना चुना है अब कितना रोचक लिख पाया हूँ ये आपकी प्रतिक्रियाओं पर निर्भर करेगा। 

बात कुछ एक दिन पुरानी है जब मैं घर जाने के लिए ऑटो पकड़कर बिलासपुर स्टेशन पहुँचा, किस्सा यूँ रहा कि ऑटो वाले की बैलगाड़ी जैसी गति और College Fest ESPKTR0 2k23 में थके पैरों की वजह से मेरी पहली Train छुट गई। अब जब मैंने अगली ट्रेन की ओर नज़र दौड़ाई तो कुछ 3 घंटे बाद अगली ट्रेन रात के 12 बजे दिखी। अब 3 घंटे क्या करे ये एक बड़ा सवाल था क्योंकि कोई अच्छी से वेब सीरीज देखने के लिए Mobile पे चार्ज भी पर्याप्त मात्रा में नहीं था और वापिस हॉस्टल जाकर आने की हिम्मत मेरे सूझे पैरों में थी नहीं। तो फिर मैंने निश्चय किया की रेलवे स्टेशन के आस पास के खाद्य पदार्थों का स्वाद लिया जाए। एक सिरे से मेरा अनुभव स्टेशन के पास वाली होटलों में शुरुआत से खराब रहा है फ़िर इस खाली पेट को कौन समझाए? 

तो फ़िर मैं निकल गया अपना बस्ता टांगे खाउ गली में। बहुत ढूँढने और घूमने के बाद कुछ खास नहीं 3 रोटी, चावल, दाल, सब्जी वाली एक थाली ले ली फिर रसगुल्ले से मन तृप्त किया। अब क्यूँकि गर्मी की मांग कुछ ठंडी थी तो बगल के फालुदे वाले तक मन खिंचा चला गया। ओवरआल मैं इन्हें 7/10 की रेटिंग देकर निकल गया बिलासपुर स्टेशन का जायजा लेने कि बिलासपुर स्टेशन कैसा है? और फ़िर मैं उस जगह पहुंचा जहाँ लोग बाक Selfie लिया करते हैं अब वो कौन सी जगह है आप कॉमेंट में बताइयेगा। सेल्फ़ी लेने का मेरा भी मन किया पर तभी मेरा ध्यान एक दृश्य की ओर चला गया। और मैं उस दृश्य के पीछे

दृश्य था गेट न.1 के सामने के फुटपाथ पर बैठे, सोये और कल की चिंता में खोये मेरे जैसे दिखने वाले, मुझ जैसे बोलने वाले कुछ इंसानों का। फर्क सिर्फ इतना था कि मेरे पास घर है उनके पास नहीं, मुझे रोज चारों वक़्त खाना मिल जाता है और उन्हें हर वक़्त का खाना मांग कर खाना पड़ता है। मेरे कपड़े साफ़ धुले और प्रेस हुए थे मगर... उनके कपड़े भी फटे हुए थे। मन व्याकुल, विचलित और मौन हो पड़ा मन किया कि शिव को एक पत्र लिखूँ कि आखिर क्यों ??? फिर इतने में ही उनके बीच के एक काका ने आवाज लगाई 'बेटा इधर आओ' मैं गया मैंने कहा 'जी काका' उन्होंने कहा 'जो प्रश्न मन में है वो रहने दो और न तो तुम और न ही मैं इसका उत्तर शिव से मांगने के योग्य हैं वे पालक हैं और ये हमारी नियति है' फ़िर आगे की जो बातें थी वो थोड़ी डीप है तो उसपे कभी आगे बात करूँगा!

फ़िर यहाँ से मैं निकल गया कुछ और दृश्य समेटने और इसी बीच ट्रेन का समय हो गया और मैं अपने प्लेटफॉर्म पर पहुँच गया फिर वहाँ एक उड़ीसा से ही भैया मिल गए। हम दोनों के पास जनरल की टिकट थी तो हम दोनों थोड़ा जगह बनाकर सीट लेकर एडजस्ट हो गए और ट्रेन इसी के साथ मेरे और भैया के शहर की ओर चल पड़ी। जब आप अपनी भाषी लोगों से मिलते हो तो बात ही कुछ और होती है और सामने वाले से सोंच मिलती है तो फिर सोने पे सुहागा। एक बहुत अच्छी चर्चा शुरू हो जाती है और कभी तो चर्चा ऐसी हो जाती है कि आप अपने स्टेशन से आगे निकल जाते हैं मेरे जैसे.... हा..हा..हा..हा..हा.. 
जी हाँ मैं अपने स्टेशन से आगे निकल गया। 

अब क्या Discussion हुआ हमारा और आप क्या सीख सकते हैं हमारे Discussion से और एक Station आगे निकलने के बाद रात के 2 बजे मैं कैसे वापिस लौटा ये पूरी कहानी अगले लेख में... आपको ये लेख कैसा लगा जरूर बताएं और इसी तरह से मुझे पढ़ने और मेरे सफ़र को जानने के लिए Visit करिये मेरे Blog Site पर... 

मिलते हैं साथियों... 


https://vsnikhilkaser.blogspot.com

Comments

Mayur Wahane said…
बहुत ही रोचक लेख। इन्तज़ार रहेगा...
असली लेखन वो जिसमे दिल की बात लिखाई में नज़र आ जाए, और वही यहां इस blog में दिखने को मिला।।
बहुत मजा आया 😍😍

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