चंद्र दर्शन: एक कविता लहर (कविता - 3) लेखक : वी.एस.निखिल कसेर शीर्षक: जल्द ये फ़ासले मिट जायेंगे! ' मैं अकेला बैठकर छत पर, बस उसे ही निहारता हूँ। कभी शाम तो कभी रात, बस चाँद को पुकारता हूँ।। हर दिन हर सुबह तवज्जों से, मैं बस यही सिफारिश करता हूँ। किसी रात चाँद उतरे हुजरे पर, इसकी खुदा से गुजारिश करता हूँ।। वो जिस दिन उतरेगी छत पर, चारों तरफ रौशनी ही रौशनी होगी। चाँद होगी मेरे आशियाँ पर, और शहरवालों की आँखों में रतौंधी होगी। उस दिन से मैं शहर का, सबसे रईस जमींदार हो जाऊंगा। चाँद मेरे हुजरे की रानी, और मैं उसका कर्जदार हो जाऊंगा।। माना दूरियाँ लंबी हैं, मगर जल्दी ये दूरियाँ दूर हो जायेगी। माना फ़ासले बडें हैं, मगर जल्द ये फ़ासले मिट जायेंगे।। बस अब कुछ दिनों की बात है, मुझे उस घडी का इंतज़ार है। मालूम मुझे जल्द बीतेगा ये समय, फिर मेरी चाँद का इज़हार है।। ×2 - V.S.Nikhil Kaser (Young Writer & Philosopher) #BeConnectWithNikhil Special Than...
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