कविता लहर (कविता - 2)
लेखक : वी.एस.निखिल कसेर
शीर्षक: मुझे सिर्फ चाँद पर लिखना है!
"कभी कभी, छोटे छोटे कामों में उलझ जाता हूँ!
इसके चक्कर में, मैं लिखना शुरू से भूल जाता हूँ!
पर दावे से कह सकता हूँ कि कोई रात बीती नहीं अब तक!
जिस दिन शायरी-कलम चली न हो.. ख्वाब चाँद की बनी न हो।
मैं पूरे शहर का अकेला शायर हूँ!
जो चाँद से बेइंतेहा इश्क़ करता हूँ!
कुछ सुबह, कुछ दोपहर में फलक पर
तो कुछ शाम की कशिस में करता हो!!
कुछ इश्क़ आसमां में ऊँचाइयों पर,
तो कुछ जमीं की गहराइयों में करता हूँ।
कुछ दिन के उजाले में बेबाक सा,
तो कुछ चांदनी रात में बकौफ करता हूँ।।
चाँद जबसे मिली रूह है मेरी,
उसके नखरे सारे पसंदीदा ख्वाहिशें हैं मेरे।
उसकी अंगड़ाई चाय की प्याली है मेरी,
उसके ख्वाब सारे इबादतों के पैग़ाम है मेरे।
ऐ खुदा! चाँद प्यारी है जान सी मेरी मुझे,
अब हर रात चाँद के साथ लिखने की तमन्ना है
चाहे जियूँ जितने भी दिन जिंदगी के गिनकर,
हर वक़्त साथ चाँद के गुजारने की सिफारिश है।
माना चाँद कभी कामों में उलझ जाता हूँ!
कभी लिखना प्रिये, थोड़ा भूल जाता हूँ !
पर अब तक कोई रात हुई न होगी आसमां में!
कि पैग़ाम पहुंची न हो तेरे हुजरे पे जमीं से!!
मुझे सिर्फ चाँद के लिए, चाँद पर लिखना है।
मुझे सिर्फ चाँद के लिए, चाँद पर लिखना है।। "
- V.S.Nikhil Kaser
(Young Writer & Philosopher)
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Special Thanks To. Aman Sir 👍
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