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सुर्य ग्रहण पर कविता: मैं सूर्य अब लौट रहा हूँ!


शीर्षक : मैं सूर्य अब लौट रहा हूँ! 
लेखक : वी. एस. निखिल कसेर

(ये कविता 10 जून के सूर्य ग्रहण की स्थिति को ध्यान में रखते हुए, सूर्य की मनः स्थिति के अंतर्गत लिखी गई है। इसे पढ़िये, अपने मित्रों के साथ साझा करिये एवं Comment के द्वारा अपने सुझाव हमारे साथ साझा करिये, धन्यवाद!) 


"गुमनामी के अंधेरों में..हाँ! गुमनामी के अंधेरों में!
कुछ फ़ीके चिरागों को जरा सा मशहूर रहने दिया करो!!

जो उछलते है जरा सा चमक कर...सूर्य के सामने,
मेरे यारों, मेरे चाहनेवालों... हीरे की परख रखने वालों, 
उन्हें दो पहर तो ढंग से झूठी चमक, फैला लेने दिया करो।

फिर दमककर लौटेंगे! हम असली सूर्य अंतरिक्ष फलक पर,
हट जायेगी सारी अंधियारी जो छाई है बरसों से अब तक।

कह देना! उन झूठे बल्बों को कि; रौशनी जरा कम कर लें,
ग्रहण जल्द हटने वाला है ! बड़ी जल्द हमारा सूर्य निकलेगा।
राहत की पेटियों बांध लें सारे! अब हमारा सूर्य चमकेगा।।

एक पैग़ाम मेरी माँ को भी देना कि बताशे जरा बनाके रखे,
उनका सूरज लंबे ग्रहण से लौटेगा, लाज़मी; बड़ा भूखा होगा।

अंतिम खत मेरी चाँद को देना, तैयार रहे वो छत पर सँवर के,
बहुत जल्द उसका सूरज उस पर शायरियाँ लिखने पहुंचेगा।
जो अधूरे थे "चंद्र दर्शन" कविताएँ उन्हें पूरे करने पहुंचेगा।।

ग्रहण खत्म अब हो चुकी है, पीड़ा सारी मेरी मीट चुकी है।
जो लगे थे रोग अवसाद जरा से, वो सारे भी अब हट चुके हैं।

कह दो बादलों को तैयार रहे मेरे स्वागत की प्रतिक्षा में,
बुलाई जाएं सारी अप्सराएं पुष्पवर्षा की सुखद छाया में,
मैं सूर्य अब लौट रहा हूँ! मैं सूर्य अब लौट रहा हूँ!!"


To Be Continued... 

V.S.Nikhil Kaser
(Young Writer & Philosopher) 
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